जयप्रकाश ( jp पहाड़ी ) की रिपोर्ट
उत्तराखंड के पहाड़ों से निकली एक ऐसी हंसी, जिसने दशकों तक लोगों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरी, वह अब खामोश हो गई। घन्नानंद उर्फ “घन्ना भाई” का निधन सिर्फ एक कलाकार का जाना नहीं, बल्कि उत्तराखंड की लोकसंस्कृति के एक सुनहरे युग का अंत है। देहरादून के श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल में मंगलवार को जब उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली, तब उनके चाहने वालों के दिलों में हंसी के साथ-साथ एक गहरी उदासी भी भर गई। वे बीते पांच दिनों से अस्पताल में भर्ती थे, वेंटिलेटर पर संघर्ष कर रहे थे, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।
हंसी की जड़ों से जुड़ा एक सफर
घन्ना भाई का जन्म 1953 में पौड़ी गढ़वाल के गगवाड़ा गांव में हुआ। पहाड़ों की ठंडी हवाओं में पले-बढ़े इस बालक के भीतर बचपन से ही हास्य की अनूठी प्रतिभा थी। लैंसडाउन के कैंट बोर्ड स्कूल में पढ़ाई के दौरान वे अपने मजाकिया अंदाज से दोस्तों और शिक्षकों को खूब हंसाते।
उनका अभिनय का सफर 1970 के दशक में रामलीला मंच से शुरू हुआ। वे अपने किरदारों में इतनी जान डाल देते कि लोग असल दुनिया की चिंताओं को भूलकर ठहाके लगाने लगते। 1974 में जब उन्होंने रेडियो पर कार्यक्रम दिए, तब उनकी आवाज़ दूर-दूर तक गूंजने लगी। बाद में दूरदर्शन पर भी उन्होंने अपनी हास्य कला से लोगों का दिल जीत लिया।
उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के कार्यक्रमों में जब घन्ना भाई मंच पर आते, तो हंसी का एक नया अध्याय शुरू हो जाता। उनके चुटीले संवाद और तिखे व्यंग्य समाज की विसंगतियों को सामने रखते, लेकिन इस अंदाज में कि लोग हंसते-हंसते लोटपोट हो जाते। उनकी लोकप्रियता ऐसी थी कि कई बार तो लोग उन्हें देखते ही खिलखिला पड़ते।
सिनेमा से राजनीति तक का सफर
घन्ना भाई ने न सिर्फ मंच और रेडियो, बल्कि गढ़वाली सिनेमा में भी अपनी अमिट छाप छोड़ी। उनकी फिल्म “घर जवें” ने उन्हें जबरदस्त पहचान दिलाई। इसके अलावा उन्होंने कई गढ़वाली म्यूजिक एलबम में भी काम किया, जिनमें उनकी कॉमिक टाइमिंग और अनूठी शैली को खूब सराहा गया।
लेकिन घन्ना भाई सिर्फ हास्य कलाकार ही नहीं थे, वे समाजसेवा में भी रुचि रखते थे। वन विभाग में सेवाएं देने के बाद, 2022 में उन्होंने पौड़ी विधानसभा से चुनाव भी लड़ा। हालांकि, वे जीत नहीं सके, लेकिन उनकी छवि हमेशा एक जनप्रिय कलाकार और समाजसेवी की रही।
घन्ना भाई की विरासत
उनके निधन की खबर आते ही पूरे उत्तराखंड में शोक की लहर दौड़ गई। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा,
“आपकी सरलता, मृदुता और अद्वितीय अभिनय शैली ने न केवल लोगों को हंसाया, बल्कि जीवन को एक अलग दृष्टिकोण से देखने का नजरिया दिया। उत्तराखंड के फिल्म जगत और अभिनय के क्षेत्र में आपके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। आप सदैव हमारे दिलों में जीवित रहेंगे।”
आज घन्ना भाई भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका हास्य, उनकी ऊर्जा, और उनके द्वारा दिए गए अनमोल पल हमेशा हमारे साथ रहेंगे। पहाड़ों की वो गूंज, जो कभी उनके ठहाकों से गूंजती थी, अब यादों में बस गई है। हंसी का यह सितारा हमेशा उत्तराखंड के सांस्कृतिक आकाश में चमकता रहेगा।
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जयप्रकाश jp पहाड़ी